
सर्ग 53 में महर्षि वाल्मीकि ने राजा विश्वामित्र और महर्षि वशिष्ठ के बीच कामधेनु गाय (जिसे ‘शबला’ भी कहते हैं) को लेकर हुए संवाद का वर्णन किया है।
प्रसंग:
राजा विश्वामित्र एक महान क्षत्रिय थे। एक बार वे अपनी सेना सहित महर्षि वशिष्ठ के आश्रम में पहुँचे। वशिष्ठ ने सभी का आदरपूर्वक स्वागत किया। उन्होंने शबला गाय की सहायता से पूरे राजा और उनकी विशाल सेना को भोजन कराया।
कामधेनु की विशेषता:
शबला एक दिव्य गाय थी, जो कामधेनु की श्रेणी में आती थी। वह इच्छानुसार कोई भी वस्तु उत्पन्न कर सकती थी, जैसे स्वादिष्ट भोजन, वस्त्र, आभूषण आदि।
विश्वामित्र का शबला को माँगना:
राजा विश्वामित्र ने शबला की शक्तियों को देखकर मोहित हो गए। उन्होंने वशिष्ठ से शबला को अपने राज्य के लिए माँग लिया। उन्होंने इसके बदले में असंख्य रत्न, धन, गाएँ और हाथी देने का प्रस्ताव रखा।
वशिष्ठ का इंकार:
महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि शबला उनके लिए केवल एक गाय नहीं, बल्कि उनके यज्ञों और धार्मिक कार्यों के लिए आवश्यक है। वह आश्रम की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, इसलिए उसे देने में असमर्थ हैं।
विश्वामित्र का क्रोध:
राजा विश्वामित्र वशिष्ठ के इस उत्तर से क्रोधित हो गए। उन्होंने अपने सैनिकों को शबला को बलपूर्वक ले जाने का आदेश दिया।