दो शब्द
में कोई कवि,शायर या ग़ज़लकार नहीं हूँ । वास्तविकता यह है कि मुझे स्वयं को कवि अथवा शायर कहने में भी हिचकिचाहट होती है , क्योंकि मैं कविता , शायरी या ग़ज़ल की परिधियों में बांधने से डरता हूँ । मैं खुले मन से जो जी में आये ईमानदारी से कहना चाहता हूँ । खुलकर शब्दो में व्यक्त करना चाहता हूँ । मेरा मानना है कि हर व्यक्ति के भीतर किसी न किसी क्षणं कविता अवश्य जन्म लेती है चाहे वह ख़ुशी के पलों में हो या अवसाद क्षणो में या फिर हम भाव विह्लल हो । कोई भी रचना,रचनाकार के हृदयस्थ भाव रस का उच्छलन है । जब भाव बहार आने की छटपटाहट से ह्रदय को उदवेलित कर देता है तब कविता का जन्म होता है । तात्पर्य यह है कि कविता किसी पूर्व निर्धारित रूहरेखा के आधार पर नहीं लिखी जाती है । वह कवि को बाध्य करके अपने आपको लिखवा लेती है । कविता लेखन में सम्पूर्ण एकाग्रता अथवा समाधि की आवश्यकता पड़ती है ।
यह काव्य संग्रह मेरा एक छोटा सा प्रयास है अपने आस पास , अपने अंतर्मंन एवं स्वप्नलोक में चलने वाली घटनवाओ , द्र्श्यो को शब्द में व्यक्त करने का । इस काव्य संग्रह में सन २०१५ के बाद लिखी गई मेरी काव्य रचनाएं संग्रहित है । कवितायें , ग़ज़ले एवं मुक्तक रचनाएं जो कुछ भी है , वे साहित्यिक एवं बौद्धिक स्तर दॄष्टि से किस स्तर पर है इसका आंकलन एवं मूल्यांकन तो विद्वान , प्रबुद्ध एवं रसिक पाठक ही करेंगे । परन्तु मैं आत्माभिव्यक्ति के रूप में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि मैंने अपने अंतर्मन के सच , स्वप्नलोक की अनुभूतियों एवं जनसुलभ संवेदनाओ की अभिव्यक्ति मुक्म छन्दों के माध्यम से पूरी ईमानदारी से की है । धन्यवाद!
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दो शब्द
में कोई कवि,शायर या ग़ज़लकार नहीं हूँ । वास्तविकता यह है कि मुझे स्वयं को कवि अथवा शायर कहने में भी हिचकिचाहट होती है , क्योंकि मैं कविता , शायरी या ग़ज़ल की परिधियों में बांधने से डरता हूँ । मैं खुले मन से जो जी में आये ईमानदारी से कहना चाहता हूँ । खुलकर शब्दो में व्यक्त करना चाहता हूँ । मेरा मानना है कि हर व्यक्ति के भीतर किसी न किसी क्षणं कविता अवश्य जन्म लेती है चाहे वह ख़ुशी के पलों में हो या अवसाद क्षणो में या फिर हम भाव विह्लल हो । कोई भी रचना,रचनाकार के हृदयस्थ भाव रस का उच्छलन है । जब भाव बहार आने की छटपटाहट से ह्रदय को उदवेलित कर देता है तब कविता का जन्म होता है । तात्पर्य यह है कि कविता किसी पूर्व निर्धारित रूहरेखा के आधार पर नहीं लिखी जाती है । वह कवि को बाध्य करके अपने आपको लिखवा लेती है । कविता लेखन में सम्पूर्ण एकाग्रता अथवा समाधि की आवश्यकता पड़ती है ।
यह काव्य संग्रह मेरा एक छोटा सा प्रयास है अपने आस पास , अपने अंतर्मंन एवं स्वप्नलोक में चलने वाली घटनवाओ , द्र्श्यो को शब्द में व्यक्त करने का । इस काव्य संग्रह में सन २०१५ के बाद लिखी गई मेरी काव्य रचनाएं संग्रहित है । कवितायें , ग़ज़ले एवं मुक्तक रचनाएं जो कुछ भी है , वे साहित्यिक एवं बौद्धिक स्तर दॄष्टि से किस स्तर पर है इसका आंकलन एवं मूल्यांकन तो विद्वान , प्रबुद्ध एवं रसिक पाठक ही करेंगे । परन्तु मैं आत्माभिव्यक्ति के रूप में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि मैंने अपने अंतर्मन के सच , स्वप्नलोक की अनुभूतियों एवं जनसुलभ संवेदनाओ की अभिव्यक्ति मुक्म छन्दों के माध्यम से पूरी ईमानदारी से की है । धन्यवाद!
रचनाकार के बारे में -
“ बेबस है रात ’’ के रचनाकार हर्ष कुमार बधेका उर्फ “मसरूर “का जन्म २९ मई १९९० को मुम्बई में हुआ। यही पर उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। तत्पश्चात् के.सी. कॉलेज से स्नातक (बी.ए.) एवं हिंदी में स्नातकोत्तर (एम.ए.) की उपाधि प्राप्त की। स्नातकोत्तर में अध्ययन के दौरान ही बचपन से ही दबी हुई साहित्य रूचि को एक नया आकाश मिला। उन्होंने अपनी भावनाओं एवं रूचि के अनुसार विचारों को लिपि बद्ध करने का निर्णय लिया । यह किताब इसी रूचि और लग्न का फल है , जिसमे उन्होंने अपने अंदरूनी जज़्बात और खयालातों को बखूबी रंगों से सजाकर खूबसूरत कविताओं का रूप दिया है और एक साहित्य की खुशबू से महकते गुलदस्ते की तरह आपको पेश किया है । इन कविताओं को पढ़ते हुए आपको एहसास होगा की उन्हें चाँद से बेहद रूमानी और रूहानी लगाव रहा है और चाँद से जुड़ा रोमांच इनकी कविताओं में झलकता है।
लेखन की तरफ अपना पहला प्रेम बरक़रार रखने के साथ साथ हर्ष फिल्म डायरेक्शन से भी जुड़े हुए है और बहोत छोटे से अरसे में ही चार फिल्मो में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम कर चुके है जिसकी वजह से उनकी दुनिया और ज़िन्दगी की समज ज्यादा बड़ी और गहरी हुई है और जिसका असर उनकी लफ़्ज़ों की कलाकारी में चार चाँद लगते हुए नज़र आता है ।
BEBAS HAI RAAT - SEASON 1
दो शब्द
में कोई कवि,शायर या ग़ज़लकार नहीं हूँ । वास्तविकता यह है कि मुझे स्वयं को कवि अथवा शायर कहने में भी हिचकिचाहट होती है , क्योंकि मैं कविता , शायरी या ग़ज़ल की परिधियों में बांधने से डरता हूँ । मैं खुले मन से जो जी में आये ईमानदारी से कहना चाहता हूँ । खुलकर शब्दो में व्यक्त करना चाहता हूँ । मेरा मानना है कि हर व्यक्ति के भीतर किसी न किसी क्षणं कविता अवश्य जन्म लेती है चाहे वह ख़ुशी के पलों में हो या अवसाद क्षणो में या फिर हम भाव विह्लल हो । कोई भी रचना,रचनाकार के हृदयस्थ भाव रस का उच्छलन है । जब भाव बहार आने की छटपटाहट से ह्रदय को उदवेलित कर देता है तब कविता का जन्म होता है । तात्पर्य यह है कि कविता किसी पूर्व निर्धारित रूहरेखा के आधार पर नहीं लिखी जाती है । वह कवि को बाध्य करके अपने आपको लिखवा लेती है । कविता लेखन में सम्पूर्ण एकाग्रता अथवा समाधि की आवश्यकता पड़ती है ।
यह काव्य संग्रह मेरा एक छोटा सा प्रयास है अपने आस पास , अपने अंतर्मंन एवं स्वप्नलोक में चलने वाली घटनवाओ , द्र्श्यो को शब्द में व्यक्त करने का । इस काव्य संग्रह में सन २०१५ के बाद लिखी गई मेरी काव्य रचनाएं संग्रहित है । कवितायें , ग़ज़ले एवं मुक्तक रचनाएं जो कुछ भी है , वे साहित्यिक एवं बौद्धिक स्तर दॄष्टि से किस स्तर पर है इसका आंकलन एवं मूल्यांकन तो विद्वान , प्रबुद्ध एवं रसिक पाठक ही करेंगे । परन्तु मैं आत्माभिव्यक्ति के रूप में बस इतना ही कहना चाहूंगा कि मैंने अपने अंतर्मन के सच , स्वप्नलोक की अनुभूतियों एवं जनसुलभ संवेदनाओ की अभिव्यक्ति मुक्म छन्दों के माध्यम से पूरी ईमानदारी से की है । धन्यवाद!