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NAITIKATA KA SUKH | नैतिकता का सुख | DALAI LAMA | audiobook suno in hindi | life changing books read
Audiobook Suno
2 hours 11 minutes 17 seconds
4 years ago
NAITIKATA KA SUKH | नैतिकता का सुख | DALAI LAMA | audiobook suno in hindi | life changing books read
प्रस्तुत पुस्तक दलाई लामा की एक अँग्रेजी पुस्तक का आधिकारिक हिन्दी अनुवाद है। इस पुस्तक में प्रतित्यसमुत्पाद जैसे जटिल दार्शनिक प्रत्यय को सरलता से समझाया गया है वंही सदगुणो,करुणा और विवेक की नैतिकता के व्यक्तिगत महत्व की इस प्रकार से विवेचना की गई है कि विषाद ग्रस्त पाठक सहज ही समझने लगता है कि नैतिकता का पालन और सुखी जीवन एक ही बात है । इस पुस्तक को पढ़ कर मुझे बौद्ध धर्म के बारे मे जानकारी तो प्राप्त हुई ही है,मुझे दलाई लामा के जीवन को जानने और विश्व में शांति,सद्भाव,एकता और अंतर-सामुदायिक सम्मान कि संभावनाओं को तलाशने का अवसर मिला ।
चौदहवें दलाई लामा तेनजिन ग्यात्सो (6 जुलाई, 1935 - वर्तमान) तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष और आध्यात्मिक गुरू हैं। उनका जन्म ६ जुलाई १९३५ को उत्तर-पूर्वी तिब्बत के ताकस्तेर क्षेत्र में रहने वाले ये ओमान परिवार में हुआ था। दो वर्ष की अवस्था में बालक ल्हामो धोण्डुप की पहचान 13 वें दलाई लामा थुबटेन ग्यात्सो के अवतार के रूप में की गई। दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। बोधिसत्व ऐसे ज्ञानी लोग होते हैं जिन्होंने अपने निर्वाण को टाल दिया हो और मानवता की रक्षा के लिए पुनर्जन्म लेने का निर्णय लिया हो। उन्हें सम्मान से परमपावन भी कहा जाता है।
दलाई लामा के संदेश --
दलाई लामा के संदेश निम्नलिखित हैं :---
1. आज के समय की चुनौती का सामना करने के लिए मनुष्य को सार्वभौमिक उत्तरदायित्व की व्यापक भावना का विकास करना चाहिए। हम सबको यह सीखने की जरूरत है कि हम न केवल अपने लिए कार्य करें बल्कि पूरे मानवता के लाभ के लिए कार्य करें। मानव अस्तित्व की वास्तविक कुंजी सार्वभौमिक उत्तरदायित्व ही है। यह विश्व शांति, प्राकृतिक संसाधनों के समवितरण और भविष्य की पीढ़ी के हितों के लिए पर्यावरण की उचित देखभाल का सबसे अच्छा आधार है।
2. बौद्ध धर्म का प्रचार - मेरा धर्म साधारण है, मेरा धर्म दयालुता है।
3. अपने पर्यावरण की रक्षा हमें उसी तरह से करना चाहिए जैसा कि हम अपने घोड़ों की करते हैं। हम मनुष्य प्रकृति से ही जन्मे हैं इसलिए हमारा प्रकृति के खिलाफ जाने का कोई कारण नहीं बनता, इस कारण ही मैं कहता हूं कि पर्यावरण धर्म नीतिशास्त्रा या नैतिकता का मामला नहीं है। यह सब ऐसी विलासिताएं हैं जिनके बिना भी हम गुजर-बसर कर सकते हैं लेकिन यदि हम प्रकृति के विरफ जाते हैं तो हम जिंदा नहीं रह सकते।
4. एक शरणार्थी के रूप में हम तिब्बती लोग भारत के लोगों के प्रति हमेशा कृतज्ञता महसूस करते हैं, न केवल इसलिए कि भारत ने तिब्बतियों की इस पीढ़ी को सहायता और शरण दिया है, बल्कि इसलिए भी कई पीढ़ियों से तिब्बती लोगों ने इस देश से पथप्रकाश और बुधमित्ता प्राप्त की है। इसलिए हम हमेशा भारत के प्रति आभारी रहते हैं। यदि सांस्कृतिक नजरिए से देखा जाए तो हम भारतीय संस्कृति के अनुयायी हैं।
5. हम चीनी लोगों या चीनी नेताओं के विरुद्ध नहीं हैं आखिर वे भी एक मनुष्य के रूप में हमारे भाई-बहन हैं। यदि उन्हें खुद निर्णय लेने की स्वतंत्रता होती तो वे खुद को इस प्रकार की विनाशक गतिविधि में नहीं लगाते या ऐसा कोई काम नहीं करते जिससे उनकी बदनामी होती हो। मैं उनके लिए करूणा की भावना रखता हूँ।
Thank you for listening the book...!!