भारत की ऊर्जा यात्रा: कोयले से नवीकरणीय ऊर्जा की ओर बढ़ते इस दौर में क्या हैं सबसे बड़ी चुनौतियाँ? कैसे ग्रामीण भारत इस संक्रमण से प्रभावित हो रहा है?
शांतनु रॉय, जो CSTEP में नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा संरक्षण के सेक्टर कोऑर्डिनेटर हैं, अपने अनुभव साझा करेंगे:
ग्रिड-स्केल नवीकरणीय ऊर्जा एकीकरण की राह में आने वाली बाधाएँ कार्बन न्यूट्रैलिटी के लिए राज्य-स्तरीय रणनीतियाँ हरित हाइड्रोजन और अन्य उभरती प्रौद्योगिकियों की भूमिका
विशेष जोर:
ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा संक्रमण का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव सरकारी नीतियों और जमीनी हकीकत के बीच का अंतर
शांतनु रॉय एक ऊर्जा नीति विशेषज्ञ हैं, जिन्होंने IIM इंदौर से एमबीए किया है। उनका कार्य केंद्र और राज्य सरकारों को स्वच्छ ऊर्जा समाधानों के लिए शोध-आधारित सिफारिशें प्रदान करना रहा है। उन्होंने ताप विद्युत से लेकर नवीकरणीय ऊर्जा तक भारत के ऊर्जा परिदृश्य को गहराई से समझा है।
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हमारे होस्ट: सौरभ शर्मा
अर्थ अनर्थ के पहले सीज़न में आपका स्वागत है। यह पॉडकास्ट भारत में जलवायु परिवर्तन की सबसे गंभीर समस्याओं और यह आम लोगों को कैसे प्रभावित कर रहा है, इस पर चर्चा करता है। इस एपिसोड के लिए आपके होस्ट सौरभ शर्मा हैं, जो 101 रिपोर्टर्स में एक स्वतंत्र पत्रकार और नेटवर्क संपादक हैं। यह शो 101 रिपोर्टर्स द्वारा निर्मित है, जो जमीनी स्तर के पत्रकारों का एक अखिल भारतीय नेटवर्क है जो ग्रामीण भारत से मूल कहानियाँ तैयार करता है। अगर आपको हमारा पॉडकास्ट पसंद आया, तो कृपया हमें Spotify, Apple Podcasts या उस प्लेटफ़ॉर्म पर रेट करें जहाँ आप हमारा पॉडकास्ट सुनते हैं। आपका समर्थन हमें अधिक से अधिक दर्शकों तक पहुँचने में मदद करेगा।
हमारे हिमालय को जलवायु परिवर्तन कैसे प्रभावित कर रहा है और हिमालय में रहने वाले, वहां के संसाधनों पर टिकी आबादी पर इसका क्या असर हो रहा हैं
यह समझने के लिए हम इस बार बात कर रहे है मांशी आशर से जो 1998 से हिमालयी क्षेत्र में एक शोधकर्ता और कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं
मांशी एक कार्यकर्ता और शोधकर्ता हैं जो 1998 से जल, जंगल और जमींन के मुद्दों पर अलग अलग संगठनों और संस्थाओं से जुड़ी रही हैं। अपने 25 वर्षों के अनुभव में उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर पर्यावर्णीय न्याय के मुद्दों पर काम किया है पर उनका मुख्य काम पश्चिम हिमालय में रहा है। २००९ में इन्होेंने हिमधरा पर्यावरण समूह नामक एक स्वायत्त समूह की सह-स्थापना की।
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जलवायु परिवर्तन के कारण हमारी पृथ्वी के तापमान में लगभग 1 से 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने का अनुमान है और साथ ही साथ बढ़ती हीट वेव की घटनाओ ने हमारे जीवन में कई प्रकार की बाधाएं डालनी शुरू कर दी है । हीट वेव से न सिर्फ हमारी शारीरिक स्वस्थ्य पर असर डाला है बल्कि इसकी वजह से एक गहरी आर्थिक विषमता भी पैदा हुई है ।
यह समझने के लिए हम इस बार बात कर रहे है श्वेता नारायण से जो पिछले दो दशकों से जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर काम कर रही है।
श्वेता नारायण ग्लोबल क्लाइमेट एंड हेल्थ अलायंस (GCHA) में कैंपेन लीड हैं, जो जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के बीच संबंधों पर काम करने वाले 215 से अधिक संगठनों का वैश्विक नेटवर्क है। वह जीवाश्म ईंधन, वायु प्रदूषण, जलवायु न्याय और स्वास्थ्य समानता पर अभियान चलाती हैं, ताकि स्वास्थ्य पेशेवरों, शिक्षण संस्थानों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच जलवायु और स्वास्थ्य पर वैश्विक बहस को बढ़ावा मिले।
भारत में स्थित श्वेता को पर्यावरण न्याय के क्षेत्र में दो दशकों से अधिक का अनुभव है। वह प्रदूषण प्रभावित समुदायों और जहरीले रसायनों के संपर्क में आने वाले श्रमिकों को कानूनी, मीडिया और वैज्ञानिक शोध सहायता प्रदान करती हैं। साथ ही, वह भारत सरकार और स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर जलवायु व पर्यावरण स्वास्थ्य नीतियों में स्वास्थ्य पेशेवरों की सलाह को शामिल करने का प्रयास करती हैं। उन्होंने बिजनेस में स्नातक और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई से क्रिमिनोलॉजी और करेक्शनल एडमिनिस्ट्रेशन में सामाजिक कार्य की मास्टर्स डिग्री हासिल की है।
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जलवायु संकट क्या है, यह कितना गंभीर है और यह हम सभी को कैसे प्रभावित कर रहा है।
यह समझने के लिए कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के साथ क्या हो रहा है, रातें अधिक गर्म क्यों हैं, अभूतपूर्व वर्षा क्यों हो रही है, हमने रजित सेनगुप्ता से बात की।
राजित सेनगुप्ता क्लाइमेट जर्नलिस्ट और मीडिया टीचर हैं, जिनमें 15 साल से ज्यादा का अनुभव है। वे वर्तमान में नई दिल्ली में डाउनलोड टू अर्थ मैगज़ीन के सहयोगी सहयोगी हैं, जहां वे जलवायु डेटा केंद्र का नेतृत्व करते हैं। वे स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट फिगर्स के लेखक भी हैं, जो भारत में जलवायु पर एकमात्र डेटा आधारित वार्षिक पुस्तक और इंडियाज एटलस ऑन डिजास्टर्स भी हैं।
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भारत में सामने आ रहा जलवायु संकट सबसे पहले हमारी प्लेटों को प्रभावित करेगा!खेती की ज़मीन, कृषि उत्पाद, तटीय क्षेत्र जलवायु परिवर्तन से प्रेरित चरम मौसम की स्थिति से सबसे पहले प्रभावित होने वाले क्षेत्रों में से हैं। इससे न केवल भोजन की लागत बढ़ती है, बल्कि कई शोधकर्ताओं का कहना है कि इससे इसका स्वाद और बनावट भी बदल जाती है। भारत की लगभग 60% आबादी प्राथमिक रोज़गार के रूप में खेती पर निर्भर है। चरम मौसम अब भारत में खाद्य मुद्रास्फीति में बड़ी भूमिका निभा रहा है।
यह समझने के लिए कि हमारे अन्नदाताओं के साथ क्या हो रहा है और भारतीय अर्थव्यवस्था इससे कैसे निपट सकती है, हमने न्यूज़ पोटली के अरविंद शुक्ला से बात की।
शुक्ला एक दशक से अधिक समय से पत्रकार हैं और भारत के ग्रामीण, कृषि क्षेत्र और खाद्य अर्थव्यवस्था को करीब से कवर करते रहे हैं। एक तीक्ष्ण पत्रकार के रूप में शुक्ला नियमित रूप से देश भर में यात्रा करते हैं ताकि जमीनी स्तर पर हो रहे बदलावों, उन नवाचारों को समझ सकें जो हमारी कृषि भूमि को बेहतर बना रहे हैं तथा यह जान सकें कि हमारे शहरों से बाहर का भारत क्या चाहता है।
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