
हाथ छूटे इक अरसा हुआ
तेरा एहसास अब भी बाक़ी है
साँसों में अब भी तेरी ख़ुशबू आती है
जब तेरा ज़िक्र छिड़ता है,
तेरी बड़ी याद आती है
वक़्त को मोड़ पाता तो,
उस दिन में चला जाता,
जब हम पहली बार मिले थे,
काश तुझे देखकर मैं मुड़ गया होता
ना ये सिलसिला आगे बढ़ता,
ना कोई किसी से जुदा होता,
काश हम कभी मिले ही ना होते,
ना ये दिल तुझसे जुड़ा होता
दिल के ख़ाली साँचे में मैंने,
एक नक़ली दिल लगा रखा है,
जहाँ तेरा बसर हुआ करता था कभी,
किसी और ने अब वहाँ घर बना रखा है
हाथ छूटे इक अरसा हुआ
तेरा एहसास अब भी बाक़ी है
©आलोक