
कॉलेज का एनुअल फंक्शन डे था। राष्ट्रीय कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर मुख्य अथिति थे। कॉलेज स्टूडेंट यूनियन प्रेसिडेंट होने के नाते मुझे वोट of thanks dena tha, Hindi Mae likh kar मैंने एडवाइजर mam ko dikha diya। कहा गया इंग्लिश में ही बोलना है, मैने विरोध किया, पर कुछ लेक्चरर ने समझाया यह कॉलेज का प्रोग्राम है जैसा कहा जा रहा है वैसा ही कर दो। मुझे पहले दिनकर जी को बोलना था। वो बेहद नाराज हो गए । अगर मुझे मालूम होता हिंदी के कवि को बुला कर आप हिंदी का अपमान करेंगे तो मैं नहीं आता। मैने उसी वक्त प्रिंसिपल मेम से pen लेकर सारी स्पीच काट दी। दिनकर जी नीचे सोफे पर आ कर बैठ गए। जब मैने बोलना शुरू किया तो कहा युवा आपको निराश नहीं जाने देंगे। और उनकी कविता की लाइन बोल कर को बोलना शुरू किया , शोर मच गया,ग्राउंड में लगा घंटा जोर जोर से स्टूडेंट्स ने बजा दिया। जब नीचे उतर कर आई , तो दिनकर जी की आंखे नम थी, कहा विद्रोहीनी क्यू नही बनती। फिर जब तक वो कॉलेज में रहे उझे अपने साथ ही रखा।
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और शामिल हो जाये 1970 दिल्ली कॉलेज की वो सुनहरी यादें में , जिन्हें हम ताउम्र संजोकर रखना चाहते हैं……
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