
यह विवाद 1953 में शुरू हुए मकान मालिक-किरायेदार संबंध के उत्तराधिकारियों के बीच है। वादी ज्योति शर्मा ने सद्भावनापूर्ण आवश्यकता और किराये के बकाया के आधार पर दुकान खाली करानेकी मांग की, जबकि प्रतिवादी किरायेदारों ने मकान मालिक के उत्तराधिकारी के स्वामित्व पर विवाद किया। अदालत ने किरायेदार द्वारा मकान मालिक के स्वामित्व को चुनौती नहीं देने के सिद्धांत और वसीयत के प्रमाण पर जोर देते हुए निचली अदालतों के प्रतिकूल निर्णयों को रद्द कर दिया। परिणामस्वरूप, अदालत ने किराये के बकाया की वसूली और छह महीने के भीतर दुकान खाली करने का आदेश दिया।