Home
Categories
EXPLORE
True Crime
Comedy
Society & Culture
Business
Sports
History
Fiction
About Us
Contact Us
Copyright
© 2024 PodJoint
00:00 / 00:00
Sign in

or

Don't have an account?
Sign up
Forgot password
https://is1-ssl.mzstatic.com/image/thumb/Podcasts114/v4/45/4c/c9/454cc98b-d309-3bb9-0ca7-ef1311f54595/mza_3145983671134089560.jpg/600x600bb.jpg
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
Anant Ghosh
128 episodes
2 days ago
श्रीमद्भगवद्गीता अध्ययन
Show more...
Spirituality
Religion & Spirituality
RSS
All content for श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप is the property of Anant Ghosh and is served directly from their servers with no modification, redirects, or rehosting. The podcast is not affiliated with or endorsed by Podjoint in any way.
श्रीमद्भगवद्गीता अध्ययन
Show more...
Spirituality
Religion & Spirituality
https://d3t3ozftmdmh3i.cloudfront.net/production/podcast_uploaded/12264833/12264833-1611662212813-a83f0b918a177.jpg
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.27
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
5 minutes 21 seconds
4 years ago
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप 4.27
सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे | आत्मसंयमयोगग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते || २७ || सर्वाणि– सारी; इन्द्रिय– इन्द्रियों के; कर्माणि– कर्म; प्राण-कर्माणि– प्राणवायु के कार्यों को; च– भी; अपरे– अन्य; आत्म-संयम– मनोनिग्रह को; योग– संयोजन विधि; अग्नौ– अग्नि में; जुह्वति– अर्पित करते हैं, ज्ञान-दीपिते– आत्म-साक्षात्कार की लालसा के कारण | दूसरे, जो मन तथा इन्द्रियों को वश में करके आत्म-साक्षात्कार करना चाहते हैं, सम्पूर्ण इन्द्रियों तथा प्राणवायु के कार्यों को संयमित मन रूपी अग्नि में आहुति कर देते हैं | तात्पर्य : यहाँ पर पतञ्जलि द्वारा सूत्रबद्ध योगपद्धति का निर्देश है | पतंजलि कृत योगसूत्र में आत्मा को प्रत्यगात्मा तथा परागात्मा कहा गया है | जब तक जीवात्मा इन्द्रियभोग में आसक्त रहता है तब तक वह परागात्मा कहलाता है और ज्योंही वह इन्द्रियभोग से विरत हो जाता है तो प्रत्यगात्मा कहलाने लगता है | जीवात्मा के शरीर में दस प्रकार के वार्यु कार्यशील रहते हैं और इसे श्र्वासप्रक्रिया (प्राणायाम) द्वारा जाना जाता है | पतंजलि की योगपद्धति बताती है कि किस प्रकार शरीर के वायु के कार्यों को तकनीकी उपाय से नियन्त्रित किया जाए जिससे अन्ततः वायु के सभी आन्तरिक कार्य आत्मा को भौतिक आसक्ति से शुद्ध करने में सहायक बन जाएँ | इस योगपद्धति के अनुसार प्रत्यगात्मा ही चरम उद्देश्य है | यह प्रत्यगात्मा पदार्थ की क्रियाओं से प्राप्त की जाती है | इन्द्रियाँ इन्द्रियविषयों से प्रतिक्रिया करती हैं, यथा कान सुनने के लिए, आँख देखने के लिए, नाक सूँघने के लिए, जीभ स्वाद के लिए तथा हाथ स्पर्श के लिए हैं, और ये सब इन्द्रियाँ मिलकर आत्मा से बाहर के कार्यों में लगी रहती हैं | ये ही कार्य प्राणवायु के व्यापार (क्रियाएँ) हैं | अपान वायु नीचे की ओर जाती है, व्यान वायु से संकोच तथा प्रसार होता है, समान वायु से संतुलन बना रहता है और उदान वायु ऊपर की ओर जाती है और जब मनुष्य प्रबुद्ध हो जाता है तो वह इन सभी वायुओं को आत्मा-साक्षात्कार की खोज में लगाता है |
श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप
श्रीमद्भगवद्गीता अध्ययन