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Aise do logo ki kahani jo achanak milte hain ek railway station par
नमस्कार मैं आपका दोस्त रंजन आज एक कहानी लेकर आया हूँ। एक कल्पना है मेरी अगर पसंद
आये तो अपने दोस्तों के साथ ज़रुर साझा करें।
बात तब की है जब मैं पहली बार कोलकाता नौकरी के सिलसिले मे गया था, उस वक्त कुछ पता नहीं था कुछ सोचा भी नहीं था क्या करना है कहाँ नौकरी करनी है बस दोस्त ने बुलाया था और मैं चला गया था।
कोलकाता आये हुए लगभग 10 दिन बीत चुके थे, कई कंपनियों मे जा चुका था कहीं मैं और लोगों से पीछे रह जाता तो कहीं मुझे नौकरी पसंद नहीं आती बस ऐसे ही नौकरी ढूंढते हुए 10 दिन और बीत गये, आखिर मैं एक कम्पनी मे मेरा काम बन गया मैं भी खुश था कि चलो कुछ तो हुआ।
लगभग 15 दिनों की ट्रेनिंग के बाद मैंने काम करना सही से शुरू किया मेरा दफ्तर जाने का वक्त तय हुआ सुबह के 6 बजे से दोपहर का 3 बजे तक, मेरे लिए ये वक्त ठीक भी था क्यों की खुद के लिए शाम का वक्त भी बच जाता था।
बस दिक्कत इतनी थी कि सुबह 6 बजे दफ्तर जाने के लिए मुझे सुबह कि 4:40 की पहली लोकल पकड़नी पड़ती थी शुरू मे बहुत परेशानी हुई क्यों की सुबह जल्दी उठने की आदत नहीं थी और पहली लोकल पकड़ने के लिये मुझे पौने 4 बजे तक उठ जाना पड़ता था।
ये चौथे दिन की बात है मैं लोकल पकड़ने के लिए 5 मिनट पहले ही पहुँच गया था, प्लेटफार्म पे कुछ लोग ही थे एक चाय की दुकान खुली थी और ठीक चाय के दुकान के पीछे एक काले रंग के लिबास मे एक बहुत ही खूबसूरत सी लड़की मुझे नजर आई, तभी मेरी नज़र उसके चेहरे पे पड़ी बहुत ही खूबसूरत चेहरा, बड़ी बड़ी खूबसूरत
आँखें, उन आँखों मे बड़ी खुबसूरती से लगाया गया सूरमा लम्बे बाल मतलब इतनी खूबसूरत की शब्दों मे बयान करना थोड़ा कठिन है, एक हाथ मे एक छोटा लाल रंग का साइड बैग था एक हाथ मे उसके एक रुमाल था जिससे वो बार बार अपने आँख पोंछ रही थी, थोड़ी देर उसको देखने के बाद पता लगा कि वो रो रही थी, इच्छा हुई की जा के एक बार पूछ लूँ, पर डर भी लग रहा था।।
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